यह गीत (तुकबंदी) 1984 के अस्कोट-आराकोट अभियान के दौरान शेखर पाठक, कमल जोशी और गोविन्द पंत ‘राजू’ द्वारा रचा गया.
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
अपने गांवो को तुम जानो, अपने लोगों को पहचानो।
अपनी जड़ों की ओर चलो तुम,अपनी माटी को भी बखानो।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
जंगल हमें बचाने हैं,जंगल हमें लगाने हैं।
जंगल में मिट्टी पानी है,जंगल में ही तराने हैं।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
नदियों से सूरज निकलेगा, टिहरी सा नहिं बांध बनेगा।
हरेक गांव में हरेक जगेगा,पर्वत का तब वक्ष तनेगा।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
पर्वत का उद्धार न होगा,नशे का प्रतिकार न होगा।
संकट से संत्रस्त रहोगे,माफिया का संहार न होगा।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
भूखा जब इंसान रहेगा,धरती पर तूफान रहेगा।
बराबरी होगी धरती में, तभी कहीं इमान रहेगा।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
पर्वतवासी ना गरजेगा, जो पानी को भी तरसेगा।
संघर्षों से राह बनेगी, सूखे में मेहा बरसेगा।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
साथ साथ अपने ही होंगे, आँखों में सपने भी होंगे।
घाव किसी के भी क्यों ना हों, वे तो बस भरने ही होंगे।
अस्कोट-आराकोट अभियान जारी रहेगा, जारी रहेगा, जारी रहेगा।
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